Future of relations with China///////चीन के साथ संबंधों का भविष्य

विदेश नीति पर नजर: भारत-चीन
अंतर्राष्ट्रीय संबंध । मुख्य पेपर 2: भारत और उसके पड़ोस-संबंध
24 जून, 2020 The Indian Express

प्रीलिम्स स्तर: गैलवान नदी, श्योक नदी
मुख्य स्तर: पेपर 2- भारत-चीन संबंध

यह लेख उन परिवर्तनों को अंशांकित करता है जो चीन के साथ हमारे भविष्य के संबंधों को गैलवान घटना के बाद अनुभव करेंगे ।

Foreign Policy Watch: India-China – Civilsdaily

चीन की आक्रामकता  क्या दर्शाता है
यह आक्रामकता चीन का अभिमान, चीन में आंतरिक असुरक्षा, COVID-19 महामारी के कारण  external environment में जटिलता और उलझन दर्शाता है।
वैचारिक, सामरिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भारत द्वारा पेश की गई चुनौती दूसरा कारक हो सकता है ।

कई समझौतों का उल्लंघन
*लद्दाख में चीन की हालिया सैन्य कार्रवाइयां एलएसी के साथ शांति और सौहार्द बनाए रखने के लिए 1993, 1996, 2005 आदि के हस्ताक्षरित समझौतों का स्पष्ट रूप से उल्लंघन करती हैं।
*ये कार्रवाई उच्चतम स्तर सहित अन्य हस्ताक्षरित समझौतों का भी उल्लंघन है ।
*यह 2018 और 2019 में अनौपचारिक वुहान और चेन्नई शिखर सम्मेलनों में खुद शी द्वारा उठाए गए पदों का भी खंडन करता है ।
*2003 में दोनों देशों ने दोनों देशों के बीच संबंधों और रचनात्मक सहयोग के सिद्धांतों पर एक घोषणा (Principles for Relations and Constructive Cooperation between our two countries)  पर हस्ताक्षर किए।
*घोषणा का तीसरा सिद्धांत बताता है-दोनों देश एक-दूसरे के लिए खतरा नहीं हैं । न तो पक्ष दूसरे के खिलाफ बल प्रयोग करने के लिए उपयोग करेगा या धमकी देगा ।
*यह भारत चीन सीमा प्रश्न के निपटारे के लिए राजनीतिक मापदंडों और मार्गदर्शक सिद्धांतों पर अप्रैल 2005 में हस्ताक्षरित समझौते में दोहराया गया था ।
*अनुच्छेद 1 में कहा गया है,  inter alia: "न तो कोई पक्ष दूसरे के खिलाफ किसी भी तरह का बल प्रयोग करेगा ओर न ही करने की धमकी देगा की धमकी देगा ।

डोकलाम और अनौपचारिक शिखर सम्मेलन
*डोकलाम में आमने-सामने होने के बाद चीन के प्रति धारणाओं में गुणात्मक बदलाव हुआ ।
*इसके लिए अप्रैल 2018 में वुहान में पहला अनौपचारिक शिखर ( first informal summit) सम्मेलन हुआ ।
*उस शिखर सम्मेलन का एक महत्वपूर्ण परिणाम उच्चतम स्तर पर बैठक जारी रखने और विश्वास बढ़ाने और रणनीतिक संचार को मजबूत करने का समझौता था ।
*दूसरा अनौपचारिक शिखर सम्मेलन(first informal summit) अक्टूबर 2019 में चेन्नई में शी और नरेंद्र मोदी के बीच हुआ था।
*यह भारत द्वारा अनुच्छेद ३७० को रद्द करने और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे को उठाने की चीन की अनावश्यक और असफल कोशिश के बाद हुआ था ।
*तब तक आंतरिक और बाहरी दोनों तरह के कई अन्य घटनाक्रमों ने चीन पर 370 के मुद्दे पर दबाव  दिया  ।
*परन्तु चेन्नई में चीनियों ने बेशक कुछ लाल रेखाएं खींची ।

कौन सी लाल रेखाएं चीन को लगता है कि भारत पार कर गया है
*एक मौलिक लाल रेखा जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों में चीन का लंबे समय से आयोजित और रणनीतिक हित है ।
*जम्मू-कश्मीर में शिनजियांग और तिब्बत की सीमा को तय करे और दोनों के बीच कनेक्टिविटी की अनुमति दें।
*यह गलत तर्क दिया जाता है कि जम्मू-कश्मीर में केवल  पाकिस्तान ही मुद्दा है। चीन भी उतना ही बड़ा मुद्दा है लेकिन पाकिस्तान के मुद्दे के पीछे छिप गया है ।

विशेष प्रतिनिधि प्रक्रिया का भविष्य
*सीमा प्रश्न के समाधान के लिए विशेष प्रतिनिधि (Special Representatives) प्रक्रिया गतिरोधपूर्ण प्रतीत होती है और इसकी उपयोगिता की समीक्षा की आवश्यकता है ।
*2005 के समझौते में सीमा समझौते के लिए आवश्यक पैरामीटर शामिल हैं लेकिन स्पष्ट रूप से पर्याप्त सामान्य आधार नहीं है ।
*तथापि, यदि LAC  स्पष्टीकरण प्रक्रिया को पुनर्जीवित कर समवह में पूरा किया जाता है तो कुछ सकारात्मकता लाई जा सकती है ।
*लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में यह कहना आसान है करना कठिन ।
गश्त प्रक्रियाओं (Patrolling procedures)को आम रूप से आपसी समझौते से संशोधित करने की आवश्यकता होगी ।

अधारणीय आर्थिक साझेदारी (Unsustainable economic partnership )

*भारत और चीन के बीच आर्थिक साझेदारी की मौजूदा प्रकृति टिकाऊ नहीं है।
*हाल के वर्षों में चीन के साथ भारत का वार्षिक व्यापार घाटा वस्तुतः एक CPEC  को एक साल का वित्तपोषण करता है!
*चीन ने 2001 में डब्ल्यूटीओ में शामिल होने को लेकर भारत के प्रति अपनी सभी प्रतिबद्धताओं को अभी भी पूरा नहीं किया है।

हमारी व्यापार नीति क्या होनी चाहिए
*भारतीय व्यापार और उद्योग को आसान विकल्प लेना बंद करना होगा ।
*कोई संदेह नहीं है की ऊपर जाने कुछ लागत है , लेकिन वहां प्रौद्योगिकी और उपकरणों के अंय स्रोतों के switching के पर्यावरणीय लाभ हो सकता है ।
*भारतीय उद्यमों में वित्तीय निवेश का एक से अधिक उपलब्ध स्रोत है।

द्विपक्षीय वार्ता की प्रकृति क्या होगी
*द्विपक्षीय वार्ता तंत्र अपने निरंकुश पाठ्यक्रम को जारी रखेगा ।
*आतंकवाद जैसे भारत के हित के मुद्दों पर हमें चीन से कोई समर्थन नहीं मिलता ।
*नदी के पानी पर सहयोग विकसित नहीं हुआ है ।
*वैश्विक एजेंडे में जलवायु परिवर्तन, बातचीत और सहयोग जैसे मुद्दों पर आपसी हित के आधार पर बहुपक्षीय रूप से जारी रहेगा ।

सरकारों की प्रतिक्रिया की प्रकृति क्या होनी चाहिए
*लद्दाख में चीन की हालिया कार्रवाइयों की प्रतिक्रिया सरकार की है, जो वास्तव में एक अखिल भारतीय है ।
* इसमें सुरक्षा सहित सभी क्षेत्रों को कवर किया जाना चाहिए और समन्वित, सुसंगत होना चाहिए ।
*यह राष्ट्रवाद या देशभक्ति का सवाल नहीं बल्कि self-esteem और स्वाभिमान का सवाल है।

निष्कर्ष
भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंध तब तक प्रगति नहीं कर सकते जब तक कि सीमाओं पर शांति न हो और चीन यह मानता है कि भारत के पास भी non-negotiable core concerns , आकांक्षाएं और हित हैं ।

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